डेढ़ साल की लंबी बीमारी के बाद मम्मू जल्लाद की मौत

टीपीनगर की नई बस्ती स्थित तंग गलियों में अपने भरे पूरे परिवार के साथ मम्मू जल्लाद रहता था। परिवार में छह बेटे, तीन बेटियां और लगभग ढाई दर्जन नाती पोते हैं। मम्मू जल्लाद के सबसे बड़े बेटे पवन उर्फ सिंधी ने बताया कि उसके पिता पिछले डेढ़ साल से दमा से पीडि़त थे। करीब पंद्रह दिनों से उनकी तबियत अधिक बिगड़ी हुई थी।

गुरुवार को वह उन्हें लेकर सुभारती, जिला अस्पताल सहित कई अस्पतालों में गए, लेकिन हर जगह से जवाब मिल गया। शाम करीब सात बजे अपने ही घर पर मम्मू जल्लाद ने आखिरी सांस ली।

परिवार में अब छह बेटे और तीन बेटियों के अलावा कई पोते पोती हैं। आठवीं पास मम्मू देसी भाषा के साथ अंग्रेजी भी बोलते थे। उनकी मौत का समाचार मिलते ही तमाम लोग उनके घर पहुंच गए।

अधूरी रह गयी कसाब को फासी देने की तमन्ना

मम्मू की इच्छा थी कि मुंबई हमले के एकमात्र जिंदा आतंकवादी कसाब को खुले मैदान में फांसी पर लटकाया जाये। इससे लोगों को इस बात का पता चल सकेगा कि देश पर बुरी नजर डालने वाले का क्या हश्र होता है. उन्होंने कहा कि उसे जल्द से जल्द फांसी पर लटका देना चाहिए। उसकी मौत सैकड़ों पाकिस्तानी आतंकवादियों के लिए एक सबक होगी और वे भारत में दहशतगर्दी फैलाने से पहले सौ बार सोचेंगे।

पर मममू की मौत के साथ ही उसकी ये इच्छा भी अधूरी रह गयी, वक्त का तकाजा कहिए या राजनीति की चाल अफजल और कसाब अभी भी अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं, जबकि दूसरी ओर अपनी आंखों में अधूरा ख्याब लिए मम्मू जल्लाद चल बसा।

खानदानी पेशा था फासी देना

मम्मू का परिवार खानदानी जल्लाद रहा है। पहले उसके दादा लक्ष्मण मजीरा अंग्रेजों के जमाने के जल्लाद थे। बाद में उसके पिता कल्लू जल्लाद बने और उनके बाद यह काम उसे मिल गया। सात बेटों और दो बेटियों का पिता मम्मू मेरठ ही नहीं जबलपुर, जयपुर, दिल्ली और पंजाब में एक दर्जन से ज्यादा लोगों को फांसी पर लटका चुका है। मम्मू की मौत के बाद उनके बड़े बेटे पवन उर्फ सिंधी ने यह खानदानी परंपरा आगे बढ़ाने की घोषणा की है।

मम्मू जल्लाद ने अपने जीवन काल में 15 लोगों को फांसी पर चढ़ाया। सन् 1973 में उसने बुलंदशहर के रहने वाले दाता राम को सबसे पहले मेरठ जेल में फांसी दी थी। इसी साल उसने तिहाड़ जेल में शातिर अपराधी रंगा और बिल्ला को फांसी पर लटकाया। जबलपुर, दिल्ली और पंजाब में फांसी पर अपराधियों को लटका चुके मम्मू ने आखिरी बार सन् 1997 में जयपुर में कामता प्रसाद तिवारी को फांसी दी थी।

केवल इतना ही नहीं मम्मू जल्लाद ने अपने पिता के साथ मिलकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों को भी फांसी पर लटकाया था। मम्मू को विदेशों से भी फांसी देने के ऑफर मिले थे, लेकिन पासपोर्ट न होने के कारण वह विदेश यात्रा नहीं कर सका था।

4 महीने से नहीं मिला था वेतन

मम्मू जल्लाद को अपने काम के बदले सरकार की ओर से तीन हजार रुपये महीने की पगार मिलती थी। बड़े परिवार की दुहाई देकर उसने कई बार पैसा बढ़ाने की मांग की थी। मगर, उसकी नहीं सुनी गई। हैरत कि समाज विरोधियों को फांसी पर चढ़ाने जैसा पुण्य काम करने वाला मम्मू जल्लाद आखिरी सांस तक गरीबी से लड़ता रहा। बड़े बेटे पवन ने बताया कि पिछले चार महीने से उसे वेतन नहीं मिला था। किसी तरह से घर का गुजर बसर चल रहा था।

Posted by राजबीर सिंह at 8:06 pm.

ब्रेकिंग न्यूज़

 

2010-2011 आवाज़ इंडिया मीडिया प्रॉडक्शन. All Rights Reserved. - Designed by Gajender Singh