मध्यप्रदेश : बंदरों के उत्पात पर नियंत्रण के लिए नसबंदी योजना
ताजा खबरें, रोचक खबर 8:11 pm
मध्यप्रदेश सरकार बंदरों की बढ़ते उत्पात को देखते हुए उनकी नसबंदी कराने की योजना बना रही है.
इस योजना पर करोड़ों रूपये खर्च होने का अनुमान है. उधर दूसरी ओर, वन्य जीव प्रेमियों ने बंदरों के उत्पात पर नियंत्रण के लिए पारंपरिक तरीके नहीं अपनाने के लिए जहां सरकार की आलोचना की है तो वहीं कई हिंदूवादी संगठनों ने इसका विरोध करने का ऐलान किया है.
राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वि हिन्दू परिषद मध्यप्रदेश ईकाई के संपर्क प्रमुख बी एल तिवारी ने कहा कि बंदर, हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं. ऐसे में उनकी नसबंदी करना घोर निंदनीय कृत्य है.
इस योजना के बारे में वन मंत्री सरताज सिंह का कहना है कि बंदरों की बढ़ती संख्या पर अंकुश लगाने के लिए हम उनकी नसबंदी करने का रास्ता अपना रहे हैं. अफसरों से कहा गया है कि वे ‘वेटनरी लैब’ के वैज्ञानिकों से चर्चा कर ‘वैक्सीन’ की जानकारी लें, जिससे बंदरों की वंश वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सके.
वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि एक लाख बंदरों की नसबंदी पर लगभग 20 से 30 करोड़ रुपए खर्च होने की संभावना है. वर्ष 2004 की गणना के अनुसार प्रदेश में 3.90 लाख बंदर हैं. इनमें से लगभग 25 फीसदी ने गांवों और शहरों को अपना आशियाना बना लिया है. इसके अलावा पचमढ़ी, माण्डव, मढ़ई जैसे कई पर्यटन स्थलों में इनके उत्पात के चलते पर्यटकों में दहशत है .
उन्होंने बताया कि पचमढ़ी जैसे पर्वतीय पर्यटन केन्द्र से तो हर साल हजारों की संख्या में बंदरों को विशेषज्ञों की देखरेख में पकड़कर निकटवर्ती सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान एवं टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाता है. शहरों में बंदरों की बढ़ती संख्या और उनके द्वारा मचाए जाने वाले उत्पात के मद्देनजर वन्य प्राणी मुख्यालय ने इन पर नियंत्रण लगाने के लिए राज्य सरकार को एक प्रस्ताव बनाकर भेजा था.
वन्य प्राणी मुख्यालय के इस इस प्रस्ताव में कहा गया है कि बंदरों की बढ़ती संख्या पर तीन प्रकार से नियंत्रण किया जा सकता है . पहला यह कि बंदरों को गोली से उड़ा दिया जाए, दूसरा नसबंदी करा दी जाए और तीसरा उन्हें गांवों और शहरों से पकड़कर फिर से जंगल में छोड़ दिया जाए.
विभागीय प्रस्ताव पर विचार करने के बाद वन मंत्री सरताज सिंह ने बंदरों की नसबंदी कराने को सबसे उचित माना .
राज्य सरकार को भेजे गए प्रस्ताव के अनुसार एक बंदर की नसबंदी पर दो से तीन हजार रूपये का अनुमानित व्यय बताया गया है और इस प्रकार एक लाख बंदरों की नसबंदी पर लगभग 20 से 30 करोड़ रुपए खर्च होंगे.
उधर, वन्य जीवन बचाओ अभियान के राजीव लोचन एवं संजीव रंजन ने कहा कि मध्यप्रदेश से अधिक बंदर दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में हैं. हिमाचल प्रदेश के तो लगभग हर शहर में बंदर हैं, लेकिन वहां की सरकारों ने बंदरों के उत्पात पर नियंत्रण करने के लिए ‘लंगूर’ पाले हैं.
बंदरों के आचार-व्यवहार पर अध्ययन करने वाले अनुराग कहते हैं कि जिन क्षेत्रों में लंगूर होते हैं, बंदर वहां नहीं रहते हैं. इतना ही नहीं लंगूर, मानव से भी दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला है कि वन विभाग इस पारंपरिक विधि को अपनाने के बजाए करोड़ों रुपए खर्च करने पर क्यों तुला हुआ है.
मध्यप्रदेश पशु चिकित्सा परिषद के रजिस्ट्रार एवं ‘ब्रीडिंग एक्सपर्ट’ डा. ए के लिखी ने कहा कि उनकी जानकारी में बंदरों की वंशवृद्धि रोकने के लिए अभी किसी तरह का कोई ‘वैक्सीन’ तैयार नहीं हुआ है. बंदरों की शारीरिक संरचना मानव की तरह होती है. यदि उनकी नसबंदी करना है तो ‘सर्जरी’ के अलावा अन्य कोई उपाय नहीं है.
तिवारी ने कहा कि बंदर, हिन्दुओं के धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं. ऐसे में उनकी नसबंदी करना घोर निंदनीय कृत्य है. प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बनाए रखती है. इसमें किसी को कोई हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.
बजरंग दल के पूर्व संयोजक देवेन्द्र रावत ने कहा कि धार्मिक आस्थाओं से जुड़े किसी भी जानवर के साथ अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
इस योजना पर करोड़ों रूपये खर्च होने का अनुमान है. उधर दूसरी ओर, वन्य जीव प्रेमियों ने बंदरों के उत्पात पर नियंत्रण के लिए पारंपरिक तरीके नहीं अपनाने के लिए जहां सरकार की आलोचना की है तो वहीं कई हिंदूवादी संगठनों ने इसका विरोध करने का ऐलान किया है.
राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वि हिन्दू परिषद मध्यप्रदेश ईकाई के संपर्क प्रमुख बी एल तिवारी ने कहा कि बंदर, हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं. ऐसे में उनकी नसबंदी करना घोर निंदनीय कृत्य है.
इस योजना के बारे में वन मंत्री सरताज सिंह का कहना है कि बंदरों की बढ़ती संख्या पर अंकुश लगाने के लिए हम उनकी नसबंदी करने का रास्ता अपना रहे हैं. अफसरों से कहा गया है कि वे ‘वेटनरी लैब’ के वैज्ञानिकों से चर्चा कर ‘वैक्सीन’ की जानकारी लें, जिससे बंदरों की वंश वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सके.
वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि एक लाख बंदरों की नसबंदी पर लगभग 20 से 30 करोड़ रुपए खर्च होने की संभावना है. वर्ष 2004 की गणना के अनुसार प्रदेश में 3.90 लाख बंदर हैं. इनमें से लगभग 25 फीसदी ने गांवों और शहरों को अपना आशियाना बना लिया है. इसके अलावा पचमढ़ी, माण्डव, मढ़ई जैसे कई पर्यटन स्थलों में इनके उत्पात के चलते पर्यटकों में दहशत है .
उन्होंने बताया कि पचमढ़ी जैसे पर्वतीय पर्यटन केन्द्र से तो हर साल हजारों की संख्या में बंदरों को विशेषज्ञों की देखरेख में पकड़कर निकटवर्ती सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान एवं टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाता है. शहरों में बंदरों की बढ़ती संख्या और उनके द्वारा मचाए जाने वाले उत्पात के मद्देनजर वन्य प्राणी मुख्यालय ने इन पर नियंत्रण लगाने के लिए राज्य सरकार को एक प्रस्ताव बनाकर भेजा था.
वन्य प्राणी मुख्यालय के इस इस प्रस्ताव में कहा गया है कि बंदरों की बढ़ती संख्या पर तीन प्रकार से नियंत्रण किया जा सकता है . पहला यह कि बंदरों को गोली से उड़ा दिया जाए, दूसरा नसबंदी करा दी जाए और तीसरा उन्हें गांवों और शहरों से पकड़कर फिर से जंगल में छोड़ दिया जाए.
विभागीय प्रस्ताव पर विचार करने के बाद वन मंत्री सरताज सिंह ने बंदरों की नसबंदी कराने को सबसे उचित माना .
राज्य सरकार को भेजे गए प्रस्ताव के अनुसार एक बंदर की नसबंदी पर दो से तीन हजार रूपये का अनुमानित व्यय बताया गया है और इस प्रकार एक लाख बंदरों की नसबंदी पर लगभग 20 से 30 करोड़ रुपए खर्च होंगे.
उधर, वन्य जीवन बचाओ अभियान के राजीव लोचन एवं संजीव रंजन ने कहा कि मध्यप्रदेश से अधिक बंदर दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में हैं. हिमाचल प्रदेश के तो लगभग हर शहर में बंदर हैं, लेकिन वहां की सरकारों ने बंदरों के उत्पात पर नियंत्रण करने के लिए ‘लंगूर’ पाले हैं.
बंदरों के आचार-व्यवहार पर अध्ययन करने वाले अनुराग कहते हैं कि जिन क्षेत्रों में लंगूर होते हैं, बंदर वहां नहीं रहते हैं. इतना ही नहीं लंगूर, मानव से भी दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला है कि वन विभाग इस पारंपरिक विधि को अपनाने के बजाए करोड़ों रुपए खर्च करने पर क्यों तुला हुआ है.
मध्यप्रदेश पशु चिकित्सा परिषद के रजिस्ट्रार एवं ‘ब्रीडिंग एक्सपर्ट’ डा. ए के लिखी ने कहा कि उनकी जानकारी में बंदरों की वंशवृद्धि रोकने के लिए अभी किसी तरह का कोई ‘वैक्सीन’ तैयार नहीं हुआ है. बंदरों की शारीरिक संरचना मानव की तरह होती है. यदि उनकी नसबंदी करना है तो ‘सर्जरी’ के अलावा अन्य कोई उपाय नहीं है.
तिवारी ने कहा कि बंदर, हिन्दुओं के धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं. ऐसे में उनकी नसबंदी करना घोर निंदनीय कृत्य है. प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बनाए रखती है. इसमें किसी को कोई हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.
बजरंग दल के पूर्व संयोजक देवेन्द्र रावत ने कहा कि धार्मिक आस्थाओं से जुड़े किसी भी जानवर के साथ अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
Posted by राजबीर सिंह
at 8:11 pm.