लेले का खुलासा : सचिन का कप्तानी नहीं छोड़ने का फैसला अंजली की वजह से

लेले ने खुलासा किया है कि अंजलि की वजह से ही सचिन ने कप्तानी नहीं छोड़ने का फैसला किया था.

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज के बीच में सचिन तेंदुलकर ने कप्तान के रूप में इस्तीफा देकर बोर्ड अधिकारियों को हैरान कर दिया था लेकिन पत्नी अंजलि के हस्तक्षेप के बाद ही उन्होंने कप्तान बने रहने का फैसला किया था.

बीसीसीआई के पूर्व सचिव जेवाई लेले ने अपनी किताब ‘आई वाज देयर - मेमोयर्स ऑफ ए क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर’ में लिखा कि तेंदुलकर कप्तान के रूप में अपने असफल कार्यकाल से इतने निराश थे हो गए थे कि वे इस्तीफे के लिए 1999-2000 दक्षिण अफ्रीका सीरीज के खत्म होने का भी इंतजार नहीं कर सके.

लेले ने लिखा, ‘1999-2000 में भारत में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दो टेस्ट मैचों की सीरीज हुई थी. पहला टेस्ट मुंबई में दक्षिण अफ्रीका ने आसानी से तीन दिन में जीत लिया था. भारतीय टीम की चारों तरफ आलोचना हो रही थी, विशेषक सचिन की कप्तानी की. वह काफी निराश और नर्वस थे.

दूसरे दिन के अंत में, यह साफ हो गया था कि भारत मैच बड़े अंतर से गंवा देगा.’ उन्होंने लिखा, ‘शाम को सचिन ने मुझे एक पत्र सौंपा.

मैं हैरान हो गया क्योंकि यह उनका कप्तानी से इस्तीफा था. मैं भौचक्का रह गया. सीरीज का पहला मैच खत्म होने वाला था और दूसरा और अंतिम मैच बेंगलुरू में शुरू होने वाला था.

यहां तक अगर वह अपमानित या दोषी महसूस कर रहे थे तो उसे टेस्ट सीरीज के खत्म होने का इंतजार करना चाहिए था और तब इस्तीफा देना चाहिए था.’

लेले ने लिखा, ‘मैंने उसे (तेंदुलकर) समझाने की कोशिश की लेकिन वह मानसिक रूप से थके हुए लग रहे थे और इस्तीफा देना चाहते थे.

यह काफी मुश्किल स्थिति थी.’ उन्होंने लिखा, ‘अंत में रवि और मैंने सचिन की पत्नी डा अंजलि से बात की. मैंने सुझाव दिया कि अगर वह टीम का नेतृत्व नहीं करना चाहते तो वह टेस्ट सीरीज के अंत में ऐसा कर सकते हैं जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जाएगी.

भगवान का शुक्र है, मैं नहीं जानता कि किसके कहने पर ऐसा हुआ लेकिन सचिन ने दूसरे टेस्ट में अपनी इच्छा के विपरीत कप्तानी की.’

उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से भारत दूसरा टेस्ट भी गंवा बैठा और चयन समित ने सौरव गांगुली को वनडे सीरीज के लिए कप्तान चुना और फिर टेस्ट मैचों में भी उन्हें कप्तानी सौंप दी.’

लेले ने लिखा, ‘सचिन खुद को सफल कप्तान नहीं साबित कर सके, हालांकि बतौर खिलाड़ी वह महान हैं. मुझे उनकी शानदार बल्लेबाजी के बारे में लिखने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह जग जाहिर तथ्य है और उनके क्रि केट कौशल के बारे में कई बार लिखा जा चुका है.

जब मैंने उन्हें बतौर कप्तान इस्तीफा देते हुए देखा तो मैं रो रहा था.’ लेले ने लिखा, ‘मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं कि जब तेंदुलकर कप्तान थे, मुझे उनके साथ बातचीत के काफी मौके मिले. उनकी सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वह काफी लोगों की बातें सुना करते थे.

सचिन ने 16 वर्ष की उम्र से अंतरराष्ट्रीय क्रि केट खेलना शुरू कर दिया था और इसके बाद से बड़ों का आदर करना उनकी आदत बन गई थी. उन्हें लगता था कि बड़े लोग जो कुछ कह रहे हैं, उसे लागू करना उनका कर्तव्य है.

ऐसा करते हुए उसने अपनी समझ नहीं लगाई. कुछ मामलों में यह उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ और अन्य में ऐसा नहीं हुआ.’

उन्होंने लिखा, ‘दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज में कानपुर टेस्ट मैच के बाद चयन समिति ने अहमदाबाद में अगले मैच की टीम चुनने के लिए बैठक की. अध्यक्ष किशन रूंगटा थे जो बेहतरीन चयकनकर्ता थे.’

लेले ने लिखा, ‘इस बैठक में सचिन ने कहा कि मुंबई के नीलेश कुलकर्णी बहुत अच्छा गेंदबाज है क्योंकि उसने पिछले सत्र में 26 विकेट चटकाए थे और उसे टीम में जगह मिलनी चाहिए.

रूंगटा ने उनसे पूछा, ‘ये विकेट उसने कौन से टूर्नामेंट में लिए ? क्या आपने उसे गेंदबाजी करते हुए देखा है ?’ लेले ने लिखा, ‘सचिन अचकचा गए. वह हालांकि खुद मुंबई के खिलाड़ी हैं लेकिन वह अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम की व्यस्तता के कारण कभी कभार ही मुंबई के लिए रणजी ट्रॉफी मैच खेला है और वह घरेलू क्रिकेट को भी नहीं देख पाते. उन्होंने कहा, ‘नहीं सर, लेकिन मैं जानता हूं कि उसने 26 विकेट चटकाए हैं और वह बहुत अच्छा है.

Posted by राजबीर सिंह at 1:28 am.

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