नन्हे बच्चों को नहीं खींच पा रही आंगनबाडिय़ां

चंडीगढ, आँखों देखी संवादाता : आंगनबाडिय़ों के बारे में सब कुछ खुला है, उसी तरह जिस तरह सरकार अपनी कार्यप्रणाली को एकदम साफ तौर पर प्रकट करना चाहती है आंगनबाड़ी परिसर मल्टीपरपज हैंरसोई भी इसी में है और कक्षाएं भी यहीं और साथ-साथ लगती हैं। पेयजल और शौचालय सुविधा की भारी कमी है।

महिला और बाल विभाग के पास राज्यभर में आंगनबाडिय़ां चलाने के लिए 500 करोड़ रुपये का बजट होने और 17445 आंगनबाडिय़ों में 35 हज़ार वर्कर्स और हेल्पर के बावजूद ये केंद्र तीन से छह साल के बच्चों को अपनी तरफ आकर्षित करने में फेल हैं, जिनके लिए ये आंगनबाडिय़ां बनी हैं।
कैथल के गांव खुराना के वजीर सिंह का कहना है, ‘हमारे गांव में अधिकतर परिवारों के लिए भोजन दिया जाना कोई मुद्दा नहीं है।

मगर आंगनबाडिय़ां भोजन देने के अलावा कुछ और करती ही नहीं। सो, अगर बच्चों को कुछ सिखाना ही नहीं है तो इससे बढिय़ा तो यही है कि उसे धूल और धूप में भेजने की बजाय घर में ही रखें।हालांकि विभाग ने खिलौने, प्री-स्कूल किट्स, वर्णमाला चार्ट उपलब्ध कराये हैं मगर वे या तो कहींगुमहो गये हैं या फिर स्टोर रूम में धूल फांक रहे हैं।

अधिकांश जगहों पर आंगनबाडिय़ां पोषण-आपूर्ति केंद्र बनकर रह गये हैं जहां भोजन तैयार मिलेगा, आओ और ले जाओ। कोई जबावदेही नहीं, कोई मॉनिटिरिंग या जनभागीदारी नहीं। स्टाक के ढेर लगे हैं और जिला प्रशासन एकदम सुस्त पड़ा है। लगता है आंगनबाडिय़ां अपने ट्रैक से भटक गयी हैं। जिस विचार के साथ इनका जन्म हुआ था वह कहीं खो गया है।

संचालिका गीता को नहीं याद कि पिछली बार कब कोई अधिकारी यहां आया था। कुछ आंगनबाडिय़ों में अनप्रयुक्त स्टाक आंगनबाड़ी संचालिकाओं के घर चला जाता है। इन आंगनबाडिय़ों के लिए अनाज केंद्र सरकार से आता है जबकि कुछ अन्य कच्चा माल अतिरिक्त उपायुक्त के नेतृत्व वाली कमेटी टेंडर मांगकर खरीदती है। ज़िले में महिला एवं बाल विभाग के कार्यक्रम अधिकारी होते हैं जिनमें शीर्ष पर सीडीपीओ और फिर सुपरवाइजर्स होते हैं।

हर सुपरवाइजर 20-20 आगनबाडिय़ों पर नियंत्रण रखता है मगर ये अभी तक निष्प्रभावी लग रहे हैं। सामाजिक न्याय एवं महिला सशक्तीकरण मंत्री गीता भुक्कल ने भी माना कि समस्याएं बहुत सारी हैं कुछ जगहों पर मूलभूत सुविधाओं की कमी है। उनका कहना है, ‘हमने हाल ही में एक मानिटिरिंग परफोर्मा तैयार किया है ताकि इसमें हररोज यह भरा जाये कि कितना स्टाक प्रयुक्त हुआ है और कितना बचा है। फील्ड स्टाफ को हर पखवाड़े आंगनबाड़ी का दौरा करने को कहा गया है ताकि वे निरीक्षण करें, परफोर्मा को साइन करें और एक रिपोर्ट जमा करायें। इससे हमें असल वस्तुस्थिति का पता चलेगा।

श्रीमती भुक्कल ने कहा कि आंगनबाड़ी संचालिका अब स्टाक को अपने घरों में नहीं ले जा सकेंगी क्योंकि अब जो स्टाक दिया जा रहा है उस पर सरकारी मोहर है जिसे आसानी से पहचाना जा सकेगा। श्रीमती गीता भुक्कल ने कहा कि सरकार प्रदेश में 8255 और आंगनबाड़ी खोलने जा रही है। सभी आंगनबाडिय़ों में गैस कनेक्शन, झूले, अनाज भंडारण के लिए टिन की टंकियां, कुर्सी मेज दिये जायेंगे और सभी जगह पर्याप्त कमरे शौचालय बनाये जायेंगे

Posted by राजबीर सिंह at 4:31 am.

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