सतारा में अनचाही बच्चियों का नामकरण

लम्बे क़द की 16 वर्षीय साक्षी सतारा शहर के एक बड़े हाल में लड़कियों की भीड़ से बाहर आई और मुझे गर्व से अपना नाम बताया. इसके बाद साक्षी शब्द का मतलब भी बताया.

उन्होंने कहा, ‘‘साक्षी का मतलब हुआ गवाह. मैं आज यहाँ जो भी देख रही हूँ वो ऐतिहासिक है जिसकी मैं गवाह हूँ और जिसका मैं खुद एक हिस्सा हूं.’’

बेश.साक्षी और उनकी तरह 200 से अधिक लड़कियों का शनिवार को सतारा में हुए एक समारोह में नामकरण हुआ यानी उन्हें नया नाम दिया गया.

इन लड़कियों के परिवार वालों ने उन्हें नकुषा यानी अनचाही का नाम दिया था, क्यूंकि वो बेटियों के बजाय बेटे चाहते थे।

साक्षी इस समारोह के बाद घर जा कर अपने परिवार वालों को अपना नया नाम बताना चाहती है, ‘‘मेरे परिवार वाले मेरा नाम बदलने के लिए तैयार हो गए हैं लेकिन उन्हें मैंने अपना नया नाम अब तक नहीं बताया है. साक्षी की तरह स्थानीय प्रशासन ने 286 ऐसी लड़कियों की शिनाख्त की थी जिनका नाम उनके परिवार वालों ने नाखुषा रखा था. उनकी पहचान उनकी गुमनामी में छिपी थी.
भगवान पवार सतारा शासन में स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख हैं।

भगवान पवार, स्वास्थ्य अधिकारी

"पिछले साल एक सर्वे के दौरान हमें पता चला कि इस ज़िले में 286 लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें केवल नाखुशी के नाम से जाना जाता था. मैंने उन सबको और उनके माता पिता को नए नाम रखने की सलाह दी जो उन्होंने मान ली. आज यहाँ इस नामकरण समारोह में 200 से अधिक लडकियां आई हैं और उन्होंने अपना नाम खुद रखने का फैसला किया है"

वो कहते हैं, ‘‘पिछले साल एक सर्वे के दौरान हमें पता चला कि इस ज़िले में 286 लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें केवल नाखुशी के नाम से जाना जाता था. मैंने उन सबको और उनके माता पिता को नए नाम रखने की सलाह दी जो उन्होंने मान ली. आज यहाँ इस नामकरण समारोह में 200 से अधिक लडकियां आई हैं और उन्होंने अपना नाम खुद रखने का फैसला किया है. ’’


सतारा में महिलाओं की आबादी का अनुपात लड़कों से बहुत कम है. हर 1000 लड़कों पर इस ज़िले में मात्र 880 बच्चियां हैं. भारत के कई दूसरे इलाकों में भी लड़कियों की संख्या घट रही है.

ज़रा ग़ौर कीजिए कि 1961 के जनगणना में हर 1000 लड़कों पर 976 महिलाएं थीं. लेकिन 2011 में महिलाओं की संख्या में काफी कमी आई है. अब हर 1000 लड़कों पर 914 लड़कियां हैं जो काफी परेशानी की बात है.

सतारा और इसके आस पास पढ़े लिखे खुशहाल लोगों की एक बड़ी आबादी है लेकिन दूसरी या तीसरी बेटी के पैदा होने के बाद वो उनको नाम नहीं देते केवल नाखुषा यानी अनचाही कहके पुकारते हैं.

लेकिन भगवान पवार के अनुसार इस नामकरण के बाद ज़िले में लड़कियों के प्रति सहानुभूति पैदा हुई है.

वो कहते हैं, ‘‘मेरे विचार में अब कोई माँ बाप अपनी दूसरी या तीसरी बेटी को अनचाही या नकुषा नाम नहीं देगा"

शायद उनकी बात सच हो. कम से कम यह 200 लड़कियां तो यही तमन्ना करेंगी.

Posted by राजबीर सिंह at 11:20 pm.

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