बदली हुई व्यवस्था के चलते देश के करोड़ों खाताधारियों की चांदी

वाणिज्यिक बैंकों में बचत खातों में जमा रकम पर रोज़ ब्याज जोड़ने की बदली हुई व्यवस्था के चलते देश के करोड़ों खाताधारियों की चांदी हो गई है.

सूचना के अधिकार से मिले आंकड़ों के आधार पर इंदौर के आर्थिक जानकार महेश नाटानी का मोटा अनुमान है कि ब्याज गणना की नयी पद्धति के चलते अकेले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के बचत खाताधारियों को वर्ष 2010-11 में करीब 1,738 करोड़ रुपये का अपेक्षाकृत ज्यादा ब्याज मिला.

नाटानी ने देश के सबसे बड़े कर्जदाता बैंक से सूचना के अधिकार के इस्तेमाल के जरिये मिली जानकारी के हवाले से सोमवार को बताया, ‘वित्त वर्ष 2010-11 में एसबीआई ने बचत खातों में जमा राशियों पर 10,376 करोड़ रुपये का ब्याज चुकाया. एसबीआई के बचत खातों में 31 मार्च 2011 तक 3,23,394 करोड़ रुपये की रकम जमा थी.’

51 वर्षीय आर्थिक जानकार ने अनुमान लगाया, ‘अगर बचत खातों पर ब्याज गणना की पद्धति एक अप्रैल 2010 से नहीं बदलती तो वित्तीय वर्ष 2010-11 में एसबीआई के बचत खातों की इसी जमाराशि (3,23,394 करोड़ रुपये) पर बैंक के चुकाये ब्याज का आंकड़ा महज 8,638 करोड़ रुपये के आसपास ठहरता.’

नाटानी ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2009-10 में एसबीआई ने बचत खातों में जमा राशियों पर 6,856 करोड़ रुपये का ब्याज चुकाया. एसबीआई के बचत खातों में 31 मार्च 2010 तक 2,56,263 करोड़ रुपये की रकम जमा थी.

यानी वित्तीय वर्ष 2010.11 में एसबीआई ने पिछले साल के मुकाबले बचत खातों में जमा राशि पर ब्याज के रूप में लगभग 51 प्रतिशत रकम ज्यादा चुकायी. वहीं आलोच्य अवधि के दौरान वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर बैंक के बचत खातों में जमा राशि में तकरीबन 26 फीसद का इजाफा हुआ.

बहरहाल, जैसा कि नाटानी कहते हैं कि ये केवल एसबीआई के आंकड़े हैं और बचत खातों पर ब्याज गणना की नयी पद्धति से देश के वाणिज्यिक बैंकों के कम से कम छह करोड़ खाताधारियों को मोटा फायदा हो रहा है.

उन्होंने एक अनुमान के हवाले से बताया कि देश के वाणिज्यिक बैंकों के हर 100 बचत खातों में से 20 खाते एसबीआई में हैं.

नाटानी ने बताया कि एक अप्रैल 2010 से पहले बैंकों में बचत खातों पर ब्याज की गणना प्रत्येक महीने के 10 वें दिन से आखिरी दिन के बीच न्यूनतम जमाराशि के आधार पर की जाती थी.

यह व्यवस्था दशकों पुरानी थी. इसमें बदलाव करते हुए वर्ष 2009 में भारतीय रिजर्व बैंक की जारी वाषिर्क मौद्रिक और ऋण नीति में कहा गया था कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में बचत खातों पर देय ब्याज की गणना दैनिक आधार पर की जायेगी और नयी पद्धति एक अप्रैल 2010 से लागू होगी.

उन्होंने बताया, ‘वाणिज्यिक बैंकों में बचत खातों पर ब्याज गणना की पुरानी व्यवस्था ग्राहकों के हितों के सरासर खिलाफ थी और इससे उन्हें हर साल बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा था. लिहाजा मैंने और मेरे दोस्त अजित जैन ने इस व्यवस्था को वर्ष 2007 में जनहित याचिका के जरिये मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.’

नाटानी ने बताया कि इस याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने वर्ष 2008 में रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय को नोटिस जारी किये थे.

Posted by राजबीर सिंह at 6:53 pm.

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