फिर से तय होगी ग़रीबी रेखा की परिभाषा: मोंटेक सिंह अहलूवालिया


गरीबी रेखा हलफनामे से उठे विवाद के बीच योजना आयोग और ग्रामीण विकास मंत्रालय गरीबी की रेखा को फिर से परिभाषित करने पर सहमत हो गए हैं.

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सोमवार को प्रेस वार्ता में कहा कि योजना आयोग गरीबी रेखा की नयी परिभाषा तय करेगा.

गरीबी रेखा पर हुए बवाल पर विराम लगाते हुए सरकार ने 32 रूपये की रिपोर्ट से किनारा कर दिया.

सरकार का कहना है गरीबी रेखा पर विवाद सुप्रीम कोर्ट में दिए गए तथ्यों की गलतफहमी से है.

सिंह ने कहा कम गरीबी रेखा दिखाए जाने के आरोप बेबुनियाद हैं.

मोंटेक सिंह ने कहा गरीबी रेखा की पहली परिभाषा तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित थी.

अहलूवालिया के स्वदेश लौटने के बाद ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने सोमवार को अहलूवालिया से मिलकर गरीबी रेखा की परिभाषा के बारे में बातचीत की.

आहलूवालिया ने ऐलान किया है कि सामाजिक-आर्थिक आधार पर देश में फिर से सर्वेक्षण किया जाएगा.

इसके तहत ग्रामीण इलाकों में गरीबों की गिनती होगी.

इस मुद्दे पर रविवार को अहलूवालिया ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बातचीत की थी.

रमेश ने अहलूवालिया से योजना आयोग के कार्यालय में 12 बजे मुलाकात करके एक घंटे तक इस मुद्दे पर चर्चा की.

बैठक के बाद दोनों ने पत्रकारों को बताया कि गरीबी रेखा से जुड़े सभी मसलों पर उन्होंने बातचीत की है और इस मुद्दे पर हमारी आम सहमति है.

गौरतलब है कि रमेश ने सुप्रीम कोर्ट में योजना आयोग के हलफनामें का विरोध किया था, जिसमें तेंदुलकर फार्मूले के आधार पर शहरी इलाकों में 32 रुपए प्रति व्यक्ति और ग्रामीण इलाकों में 26 रुपए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से अधिक आय वालों को गरीब नहीं माना गया है.

इस हलफनामें से देशभर में काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी.

न केवल आम आदमी बल्कि राजनीतिक दलों और देश के अर्थशास्त्रियों ने भी इस आंकड़े को अस्वीकार किया था तथा गरीबी के साथ मजाक बताया था.

सरकार की मानें तो हर दिन 26 रूपया खर्च करने वाला गरीब नहीं

योजना आयोग की बेतुकी सिफारिश पर ग़ौर फ़रमाइए. खाने के लिए रोज 26 रूपए खर्च करते हैं तो आप गरीब नहीं.

ये आँकड़ा है ग्रामीण परिवार के लिए. वहीं शहरों में अगर रोज खान-पान पर खर्च के लिए किसी के पास 32 रूपए है तो वह गरीब नहीं माना जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे में योजना आयोग ने कहा है कि खानपान पर शहरों ने 965 रुपए प्रति महीना और गांव में 781 रुपए प्रति महीना खर्च करने वाले शख्स को गरीब नहीं माना जा सकता है. ऐसे परिवारों को गरीबी रेखा से नीचे वाली सुविधाएं नहीं देनी चाहिए.

गरीबी की ये नई परिभाषा तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई है

योजना आयोग का मानना है कि हर रोज 5.5 रुपए का अनाज, 1.02 रुपए की दाल, 2.33 रुपए का दूध और 1.55 रुपए का खाद्य तेल एक व्यक्ति को सेहतमंद रखने के लिए काफी है.

रिपोर्ट के मुताबिक सब्जियों पर हर रोज 1.95 रुपए, फल पर 44 पैसे, चीनी पर 70 पैसे और नमक-मसाले पर 78 पैसे खर्च करना उचित होगा.

किचन में गैस या दूसरे ईंधन पर रोजाना 3 रुपए 75 पैसे का खर्च प्रस्तावित किया गया है.

खास बात है कि यह आंकड़ा इसी जून की महंगाई के बावजूद है. सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को प्रस्तुत किए गए शपथपत्र में योजना आयोग के सलाहकार बीडी विर्दी ने कहा कि गरीबी रेखा के नीचे आंकड़ों के लिए एनएसएसओ ने घर-घर सर्वे किया है जिसके आंकड़े आ चुके हैं.

आंकड़ों की समीक्षा की जा रही है लेकिन प्रोविजनल आंकड़ों से कहा जा सकता है कि जून 2011 तक के हिसाब से गांवों में 781 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह और शहरों में 965 रुपए प्रति व्यक्ति प्रतिमाह उपभोग हो गया है.

तेंदुलकर समिति ने 2004-05 में अनुमान लगाया था कि गांवों में 15 रुपए प्रति व्यक्ति और शहरों में 20 रुपए प्रति व्यक्ति उपभोग काफी है.

सुप्रीम कोर्ट ने बीपीएल परिवारों को खाना उपलब्ध कराने के बाबत जस्टिस वाधवा समिति का गठन किया था. सुप्रीम ने 29 मार्च, 2011 और 22 जुलाई, 2011 के आदेश में कहा था कि आज की तारीख में शहरों के एक व्यक्ति को 2100 कैलोरीज 20 रुपए में और गांवों में एक व्यक्ति को 2400 कैलोरी 15 रुपए में मिलना असंभव है.

सुप्रीम कोर्ट ने योजना आयोग से कहा था कि वह चाहे तो अतिरिक्त शपथपत्र दायर कर अपना पक्ष रखे. इसी आदेश के तहत योजना आयोग ने मंगलवार को शपथपत्र दायर कर दिया, जिसमें ये रोचक बातें हैं.

इसके मुताबिक आज की महंगाई में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले एक ग्रामीण को 26 रुपए और शहरी गरीब को 32 रुपए में 1776 कैलोरी मिल सकती हैं. योजना आयोग सुप्रीम कोर्ट के 2100 और 2400 कैलोरी के अनुमान से सहमत नहीं है.

आयोग का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी एक व्यक्ति के लिए 1776 कैलोरी ही पर्याप्त मानी है. आयोग आगे कहता है कि पांच सदस्यों के ग्रामीण परिवार को एक महीने 3905 रुपए चाहिए और शहरों के एक परिवार को 4824 रुपए प्रतिमाह चाहिए. एक ग्रामीण को 12.6 किलो अनाज, 3.22 किलो दाल व शहरों में 10.24 किलो अनाज व 3.31 किलो दाल चाहिए.

नए आंकड़ों के हिसाब से देश में 35.98 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं जबकि 2005 में अंदाजा लगाया गया था कि यह संख्या 40 करोड़ के पार हो जाएगी.

Posted by राजबीर सिंह at 6:17 am.

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